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                             अध्याय  - 3 1 आसन का तात्पर्य और प्रकार आसन का तात्पर्य आसन शरीर की यह स्थिति है जिसमें आप अपने शरीर और मन को शान्त स्थिर एवं सुख से रख सकें। " स्थिरसुखमासनम्" सुख पूर्वक बिना कष्ट के एक ही स्थिति में अधिक से अधिक समय तक बैठने की क्षमता को आसन कहते है। योग शास्त्रों में परम्परा के अनुसार चौरासी लाख आसन हैं ये जीव जन्तु के नामों पर आधारित है। इन आसनों के बारे में कोई नहीं जानता इसलिए चौरासी आसनों को ही प्रमुख माना गया है। और अब कालान्तर में बत्तीस आसन ही प्रसिद्ध है। आसनों को अभ्यास शारीरिक, मानसिक एवं अध्यात्मिक रूप से स्वास्थ्य लाभ एवं उपचार के लिए किया जाता है। आसनों को दो समूहों में बाँटा गया हैः- 1 गतिशील आसन 2 स्थिर आसन 1 . गतिशील आसन -   वे आसन जिनमें शरीर शक्ति के साथ गतिशील रहता है। 2. स्थिर आसन -   वे आसन जिनमें अभ्यास को शरीर में बहुत ही कम या बिना गति के किया जाता है। आसनों को विभिन्न रूपों में बाँटा गया है। जैसे प्रारंभिक समूह के आसन वायु निरोधक अभ्यास ...