Yoga se hoga : Swasth jeevam ki shuruaat yahan se

                             अध्याय 1
योग क्या है :-

                (मवतापेन तप्तानाम् योगो हि परमौषधम्)

योगासन

योग शब्द 'युज धातु से बना, जिसका अर्थ होता है जोड़ना। जीवात्मा का परमात्मा से मिल जाना, एक हो जाना ही योग है।

योगाचार्य महर्षि पतञ्जली ने सम्पूर्ण योग के रहस्य को अपने योगदर्शन में सूत्रों के रूप में उपदेश किया है।

चित्त को एक जगह स्थापित करना योग है।


योग से लाभ :-
योग से कई लाभ होते हैं जो आपके शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य को सुधारते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख लाभ दिए गए हैं:-

1. शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार: योग से शरीर की लचीलापन, ताकत और संतुलन बढ़ता है। यह मांसपेशियों को मजबूत करता है और शरीर के मुद्रा को सुधारता है।

2. मानसिक शांति: योग से मन को शांति मिलती है। प्राणायाम और ध्यान से मानसिक तनाव, चिंता और अवसाद में कमी आती है, जिससे मानसिक स्थिति स्थिर रहती है।

3. तनाव और चिंता का निवारण: योग के अभ्यास से तनाव कम होता है और मानसिक स्थिति बेहतर होती है। यह शरीर और मन दोनों को आराम पहुंचाता है।

4. रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) में सुधार: योग से रक्तचाप को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे हृदय स्वास्थ्य बेहतर होता है और रक्त प्रवाह सुचारू रहता है।

5.जोड़ों और हड्डियों का स्वास्थ्य: योग से जोड़ों और हड्डियों में लचीलापन आता है, जिससे गठिया और जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है।

6. वजन कम करना: योग के कुछ आसन, जैसे विन्यास और अष्टांग, कैलोरी जलाने में मदद करते हैं और वजन कम करने में सहायक होते हैं।

7. बेहतर नींद: योग से नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है। शांति और विश्राम देने वाली तकनीकों से नींद गहरी और आरामदायक होती है।

8. पाचन शक्ति में सुधार: योग के कुछ आसन पाचन तंत्र को बेहतर बनाने में मदद करते हैं, जिससे कब्ज और पेट से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं।

9. प्रतिरक्षा तंत्र में मजबूती: योग से शरीर की रोग प्रतिकारक क्षमता बढ़ती है, जिससे आप बीमारियों से बचाव कर सकते हैं।

10. भावनात्मक संतुलन: योग से मानसिक शांति और भावनाओं का नियंत्रण मिलता है, जिससे आप अपनी भावनाओं को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं और नियंत्रित कर पाते हैं।

योग शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य को सुधारने का एक सम्पूर्ण उपाय है, जो आपको जीवन में समग्र संतुलन और शांति प्रदान करता है।

 योगासन हेतु सावधानियाँ :-

1. योगासन करने से पूर्व शौच, स्नान आदि से निवृत्त हो जाएँ।
2. प्रातःकाल योगासन करना अधिक लाभकारी है।
3. योगासन करने के तुरन्त बाद स्नान नहीं करना चाहिए। पसीना को पंखे से न सुखाएँ, शरीर का ताप सामान्य होने पर स्नान करें।
4 योगासन के आधा घंटा पश्चात् दूध, दलिया, फल या अँकुरित अनाज थोड़ी मात्रा में अवश्य लेना चाहिए।
5. आसन एकान्त तथा धूल, मिट्टी व धुआ रहित स्थान पर किया जाना चाहिए। घर की छत, पार्क, नदी के किनारे अथवा ऐसे खुले स्थान पर करना चाहिए जहाँ शुद्ध हवा आती जाती हो। अधिक ठंड में योगासन खुले कमरे में करे।
6. आसन करते समय शरीर पर वस्त्र कम से कम और ढीले होने चाहिए।
7 समतल भूमि पर गरम कंबल मोटी दरी बिछाकर ही आसन करें। खुली भूमि पर बिना कुछ बिछाकर आसन कभी न करें, जिससे शरीर में निर्मित होने वाला विद्युत प्रवाह नष्ट न हो जाए।
8.श्वास मुँह से न लेकर नाक से ही लेना चाहिए।
9 आसन करते समय शरीर के साथ जबरदस्ती न करें, अतः धैर्य पूर्वक आसन करें।
10. आसन के पूर्व थोडा ताजा जल पीना लाभदायक है। आक्सीजन और हाइड्रोजन में विभाजित होकर सधि स्थानों का मल निकालने में जल बहुत सहायक होता है।
11. आसन की स्थिति में श्वासप्रश्वास का विशेष ध्यान रखें।
12. आसन करते समय शरीर में जिस स्थान पर खिंचाव पड़ रहा हो, कष्ट होने लगे या पीड़ा का अनुभव हो तो उस अभ्यास को तुरन्त बंद कर देना चाहिए।
13. आसन जितने समय तक सरलता से कर सकें उतने समय तक ही करें।
14. आसन नियमित तथा एकाग्रचिन्त होकर प्रसन्न मुद्रा में करना चाहिए।
15. आसन में प्रतिस्पर्धा नहीं करना चाहिए।
16. रुग्णावस्था में कुशल योग शिक्षक की देख-रेख में विशेष आसन करना चाहिए।
17. भोजन के चार घंटे बाद ही आसन किया जा सकता है।

योग करने से पहले गुरुओ को प्रणाम करना चाहिए  :-

गुरुवन्दना :-

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परमब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ।।

श्री सरस्वती वन्दना :-

या कुन्देन्दुतुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृत्ता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना। या ब्रह्मच्युतशंकर प्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्‌यापहा ।।

जो कुन्दपुष्प, चन्द्रमा, बर्फ (तुषारहार) के समान धवल (श्वेत) है. जो शुभ्र (श्वेत) वस्त्र धारण करती है, जिनके हाथ उत्तम वीणा से सुशोभित है, जो श्वेतकमलासन पर विराजमान है, ब्रह्म विष्णु, महेश आदि देवों के द्वारा जिनकी वंदना की जाती है, सब प्रकार की जड़ता को दूर करने वाली ऐसी भगवती सरस्वती मेरा पालन करें, मेरी रक्षा करें।

 गायत्री मंत्र :-

ओ३म् भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं ।
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ।।

भावार्थ :- उस प्राणस्वरूप, दुखनाशक, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। यह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें।

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